हिंदी साहित्य का सम्पूर्ण इतिहास Hindi sahitya ka sampurn Itihaas

हिंदी साहित्य का सम्पूर्ण इतिहास Hindi sahitya ka sampurn Itihaas ma hindi notes hindi sahitya notes

हिंदी साहित्य का सम्पूर्ण इतिहास 



साहित्य का इतिहास सामाजिक चेतना के अनुरूप बदलती हुई जनता की चित्तवृत्तियों का ही सृजनात्मक प्रतिफलन होता है। हिंदी साहित्य का इतिहास विक्रम संवत 1050 से अद्यतन काल तक माना गया है। साहित्य के इतिहास में काल विभाजन का मुख्य प्रयोजन विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों के संदर्भ में साहित्य की प्रकृति एवं प्रवृत्ति को स्पष्ट करना है। 
 हिंदी साहित्य के काल विभाजन  का आधार सांस्कृतिक राजनीतिक साहित्यिक प्रवृत्ति या कालखंड विशेष को बनाया  गया है। हिंदी साहित्य इतिहास लेखन का प्रथम प्रयास फ्रांसीसी विद्वान गार्सा द तासी द्वारा किया गया। गार्सा द तासी ने इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी नामक ग्रंथ लिखा । राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी साहित्य का आरंभ सातवीं शताब्दी से माना है तथा सरहपाद को हिंदी साहित्य का प्रथम कवि स्वीकार किया है। 


हिंदी साहित्य का काल विभाजन --

  1. जॉर्ज ग्रियर्सन का काल विभाजन---

                हिंदी साहित्य के काल विभाजन  हेतु कवियों और लेखकों को  काल क्रमानुसार विभाजन करने का सर्वप्रथम  प्रयास  जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया ।जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा the modern Vernacular literature of Hindustan  ग्रंथ के रूप में हिंदी साहित्य का इतिहास प्रस्तुत किया गया। जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा हिंदी साहित्य  11 कालों में विभाजित किया। इन्होंने हिंदी साहित्य का प्रारंभ 700 ईस्वी से माना।
  1. मिश्र बंधुओं का काल विभाजन---

           मिश्र बंधुओं ने हिंदी साहित्य के अपने इतिहास ग्रंथ मिश्र बंधु विनोद में जो काल विभाजन किया है वह निम्नलिखित है -
                                        १. आरंभिक काल २ माध्यमिक काल ३ अलंकृत काल ४ परिवर्तन काल ५ वर्तमान काल
  1.  आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन-- 

           सन 1929 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने हिंदी साहित्य का इतिहास ग्रंथ में अपना नया काल विभाजन प्रस्तुत किया। यह ग्रंथ नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित किया गया था।वर्तमान में यही काल विभाजन सर्वमान्य है।आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का मानना था कि प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ति का प्रतिबिंब होता है। जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य का स्वरूप भी परिवर्तित होता चला जाता है। 
          आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को 4 कालों में विभक्त किया-- 
                  १ वीरगाथा काल (आदिकाल )  विक्रम संवत  1050 से 1375 तक 
                  २  भक्ति काल   ( पूर्व मध्यकाल)  विक्रम संवत 1375 से 1700 तक
                  ३   रीतिकाल  ( उत्तर मध्यकाल)   विक्रम संवत 1700 से 1900 तक
                  ४ आधुनिक काल ( गद्य काल)  विक्रम संवत 1900 से अब तक
  1.  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन---

                 १ आदिकाल    ---  1000 ईस्वी से 1400 ईस्वी तक
                 २ पूर्व मध्यकाल ----- 1400 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक
                 ३  उत्तर मध्यकाल----- 1700 ईस्वी से 1900 ईस्वी तक
                 ४  आधुनिक काल --  1900 ईस्वी  से अब तक



आदिकाल 
हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रारंभ आदिकाल से होता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल भाषा और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध काल है। हिंदी साहित्य  में आदिकाल का समय 1050 विक्रम संवत से 1375 विक्रम संवत तक माना जाता है। हिंदी भाषा साहित्यिक अपभ्रंश के साथ-साथ चलती हुई क्रमशः जन भाषा के रूप में साहित्य रचना का माध्यम बन रही थी। जिन परिस्थितियों में आदिकाल का साहित्य रचा गया  उनमें वीरता , ओज,  श्रृंगार और धार्मिक उपदेशों का बाहुल्य था।
 आदिकाल का नामकरण :--
         हिंदी साहित्य के आरंभिक काल के लिए विद्वानों ने अलग-अलग आधारों पर विभिन्न नाम दिए हैं जिनमें वीरगाथा काल,  संधि काल,  चारण काल,  सिद्ध सामंत काल,  बीजवपनकाल  आदि प्रमुख है। 

वीरगाथा काल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
वीरगाथा आत्मक ग्रंथों की प्रचुरता
आदिकाल
हजारी प्रसाद द्विवेदी 
प्रारंभिक काल होने के कारण
चारण काल
रामकुमार वर्मा 
अधिकांश कवि चारण थे
सिद्ध सामंत काल
राहुल सांकृत्यायन
सिद्धो के साहित्य तथा सामंतों की स्थिति के कारण
बीजवपनकाल
महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिंदी साहित्य का बीजारोपण हुआ 

आदिकाल की परिस्थितियां-- 
  1.  राजनीतिक परिस्थितियां --   आदिकाल की परिस्थितियां बदतर थी। हर्षवर्धन का  साम्राज्य पतित हो चुका था। उत्तरी भारत पर यवनों के आक्रमण हो रहे थे।  भारत में महमूद गजनवी ने तथा उसके बाद मोहम्मद गोरी ने शासन किया।तत्कालीन जनता इन शासकों के अत्याचारों से आक्रांत । मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत पर शासन किया। तदुपरांत भारत पर गुलाम वंश का आधिपत्य रहा।परिवेश में कवियों ने दरबारी आज से ग्रहण किया और उनकी प्रशस्ति तथा  शौर्य गान किया।
  2. धार्मिक परिस्थितियां  ---- हर्षवर्धन तक राजनीतिक परिवेश की तरह धार्मिक वातावरण ही अच्छा एवं पर्याप्त समृद्धि था किंतु उसके बाद के  शासकों के अत्याचारों एवं कला के प्रति उपेक्षित व्यवहार के कारण साहित्य विकास कम हुआ। 
  3.  सामाजिक परिस्थितियां ---  आदिकालीन समाज भी विभिन्न जातियों एवं वर्गों में बटा हुआ था। समाज असंगठित था।  शिक्षा व्यवस्था का भाव था।
  4.  सांस्कृतिक परिवेश ---  सम्राट हर्षवर्धन के समय तक भारत सांस्कृतिक दृष्टि से संपन्न एवं संगठित था। हर्ष के शासन काल में संधि चित्र मूर्ति एवं स्थापत्य कला का भरपूर विकास हुआ।
  5.  साहित्यिक  परिस्थितियां ---  आदिकालीन साहित्य की मूल विषय वस्तु स्वामी सुखाय थी । इन साहित्य में राजाओं के शौर्य एवं उनकी वीरता की अतिशयोक्ति की प्रधानता थी। आदिकालीन साहित्य की भाषा  अपभ्रंश एवं प्राकृत थी।

 आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां -- 
  • आश्रयदाताओं की प्रशंसा
  • ऐतिहासिकता का अभाव
  • अप्रमाणिक रचनाएँ
  • युद्धो का सजीव वर्णन
  • राष्ट्रीयता का अभाव
  • वीर तथा श्रृंगार रस
  • विविध छंदों के प्रयोग ( दोहा , रोला , तोटक ,तोमर , गाथा ,आर्या)
  • डिंगल भाषा (राजस्थानी) का प्रयोग
  • काव्य शैली – (मुक्तक तथा प्रबंध)
  • रासो शैली की प्रधानता (गेय काव्य)
  • प्रकृति चित्रण
                                     

धार्मिक साहित्य
सिद्ध साहित्य
नाथ साहित्य
जैन साहित्य
तांत्रिक क्रियाओं में आस्था एवं मंत्र द्वारा सिद्धि चाहने के कारण इन्हें सिद्धि कहा जाने लगा। राहुल सांकृत्यायन हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनकी संख्या 84 मानी है। 
सिद्धू द्वारा जन भाषा में लिखा है गया साहित्य सिद्ध साहित्य कहा  जाता है। वस्तुतः यह बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ रचा गया। 
नाथ संप्रदाय सिद्धों की परंपरा का विकसित रूप माना जाता है। गोरखनाथ नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक है। इन्होंने शिव को आदिनाथ माना है। इनके योग में संयम एवं सदाचार पर बल दिया गया है। किस संप्रदाय में शब्द से आशय है-- मुक्ति देने वाला।
 नाथ योगियों की संख्या मानी गई है 
सांसारिक विषय वासनाओं पर विजय प्राप्त करने वालों को जैन कहा जाता है। जैन संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य महावीर स्वामी ने। इन्होंने व्रत उपासना पर बल दिया है। जैन साहित्य में नीतियों का प्रमुख उल्लेख है।
रचनाएं--
 सरहपा  ---  सरहपादगीतिका 
 कण्हपा --- कण्हपादगीतिका 
प्रमुख कवि-- 
    गोरखनाथ ,  हरिश्चंद्र ,  नागार्जुन 
प्रमुख रचनाएं--
  स्वयंभू -- स्वयंभू छंदस् , पउम चरिउ (जैन रामायण)  
        स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा जाता है । 
 पुष्पदंत ---  णयकुमार चरिउ (नागकुमार चरित)





लौकिक साहित्य
  1. अमीर खुसरो --    खालिकबारी ,   खुसरो की पहेलियां ,  मुकरियां ,  सुखना
  2.  विद्यापति  --  कीर्ति लता,  कीर्ति पताका,  पदावली
  हिंदी साहित्य जगत में विद्यापति मैथिल कोकिल के नाम से विख्यात है। उनका जन्म 1368 ईसवी में हुआ। विद्यापति जी को कृष्ण भक्ति काव्य की रचना करने वाला हिंदी का प्रारंभिक कभी स्वीकार किया जाता है। इनके प्रथम आश्रय जाता राजा कीर्ति सिंह थे। इन्हीं की प्रशंसा में उनके द्वारा कीर्ति लता एवं कीर्ति पताका कृतियों की रचना की गई।  इनकी प्रसिद्धि का  प्रमुख आधार पदावली को माना जाता है। 



चारण साहित्य
वीरगाथात्मक  रासो काव्य
श्रृंगारपरक  रासो काव्य
धार्मिक रासो काव्य
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने इसे आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्ति मानते हुए आदिकाल का नाम वीरगाथाकाल रखा। आश्रय दाताओं की प्रशंसा में जो काव्य रचित हुआ वह वीरगाथात्मक रासो के अंतर्गत आता है। इस काव्य के रचयिता राजाओं के दरबारों में रहने वाले चारण अथवा भाग थे इस प्रकार यह काव्य प्रवृत्ति स्वामिन: सुखाय थी।
किस वर्ग के अंतर्गत रासो साहित्य में श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।
इस वर्ग के अंतर्गत देश पर ग्रंथ आते हैं।
रचनाएं--
  1.  खुमाण रासो  -- दलपति विजय
  इस कृति में मेवाड़ के महाराजा बप्पा रावल से लेकर महाराजा राजसिंह तक का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें प्रमुख रूप से राजाखुमाण का चरित्र वर्णन है।

  1.  हम्मीर रासो  ---  शारंगधर
 यह रचना उपलब्ध नहीं है । उसके केवल 8  पद्य उपलब्ध है ।

  1.  विजयपाल रासो ---  नल्हसिंह भाट
 किस ग्रंथ में विजयगढ़ (करौली)  के शासक विजयपाल का चरित्र वर्णन किया गया है। इसमें पंग राजा एवं विजय पाल सिंह के मध्य हुए युद्ध का वर्णन भी उपलब्ध है।

  1.  पृथ्वीराज रासो ---  चंदबरदाई
पृथ्वीराज रासो को हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य तथा चंद्रवरदाई को प्रथम कवि माना जाता है।
  1. परमाल रासो --  जगनिक
 इसमें आल्हा उदल का वर्णन है।   
रचनाएं--
  1.  संदेश रासक --  अब्दुल रहमान
इस काव्य में विजयनगर में रहने वाली एक स्त्री की वियोगगाथा का मार्मिक वर्णन किया गया है। नायिका का पति गुजरात चला जाता है। नायिका अपने ग्रह का संदेश  एक राहगीर के द्वारा अपने पति तक पहुंचाने हे तू कहती है तभी उसका मालिक आता हुआ दिखाई देता है।

  1.  बीसलदेव रासो ---  नरपति नाल्ह
 राजा विग्रहराज (बीसलदेव)  अपनी पत्नी के व्यंग्य बाणों से रुष्ट होकर उड़ीसा राज्य चले जाते हैं एवं 12 वर्षों तक नहीं  लौटते  हैं।
रचनाएं--
  भारतेश्वर बाहुबली रास -- सालीभद्र सूरी
    इस ग्रंथ में ऋषभदेव के दो पुत्रों भरत एवं बाहुबली के युद्ध का वर्णन है।
  


                         
भक्ति काल 
हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल के पश्चात भक्ति काल  आता है। साहित्य दृष्टि से भक्ति काल का समय 3075 विक्रम संवत से लेकर 1700 विक्रम संवत के मध्य तक माना जाता है।भक्ति आंदोलन हिंदी साहित्य  ही नहीं अपितु भारतीय साहित्य एवं भारतीय जनमानस का एक महत्वपूर्ण आंदोलन है। भक्ति काल को दो शाखाओं में विभक्त किया गया है-  निर्गुण भक्ति  काव्य तथा सगुण भक्ति काव्य। निर्गुण भक्ति काव्य को पुनः संत काव्य धारा एवं  सूफी काव्य धारा में विभक्त किया गया है, इसी प्रकार सगुण भक्ति काव्य को भी कृष्ण काव्य धारा एवं राम काव्य धारा  में विभाजित किया गया है। 
भक्ति काल की परिस्थितियां ---- 
 राजनीतिक परिस्थितियां -- तेरहवीं शताब्दी मैं भारत पर मोहम्मद तुगलक का शासन था। मोहम्मद तुगलक बहुमुखी  प्रतिभाशाली था। वह धर्म क्षेत्र में उधार तथा कला को प्रश्रय प्रदान करने वाला शासक था।फिल्म सन 1526 में पानीपत के युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की। भारत में मुगलों का शासन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूं तथा उसके बाद बहु प्रतिभाशाली अकबर ने भारत पर शासन किया। अकबर ने हिंदुओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए। हिंदुओं पर सेजरिया कर हटाया। अकबर एक उदार एवं जन हितेषी राजा था। किंतु बाद में औरंगजेब आदि कट्टरवादी एवं निष्क्रिय शासकों के कारण मुगल वंश का नाश हुआ। देश में मुस्लिमों  शासको के द्वारा हिंदू मंदिरों का विध्वंस किया जाता था, देव मूर्तियां तोड़ी जाती थी ।  इस कारण जनता का रुख भक्ति की ओर मुड़ा तथा भक्ति प्रधान साहित्य का सृजन हुआ।
 सामाजिक परिस्थितियां --  भक्ति आंदोलन ने अपने आरंभिक दौर में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द पर बल दिया। इसमें वर्ण व्यवस्था में जाति प्रथा  का विरोध किया गया। इस काल में पर्दा  प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुरीतियों का बोलबाला था। राजपूतों में कन्या शिशु के जन्म से ही उसे मार दिया जाता था।
साहित्यिक-सांस्कृतिक परिस्थितियां ---- इस काल में भक्ति भावना के प्रचारार्थ साहित्य की रचना की गई। भक्ति काव्य जहां धर्म की व्याख्या करता है, वही उसने उच्च कोटि के काव्य के दर्शन होते हैं।  इस काल का साहित्य स्वान्तः सुखाय है। किस काल के कवियों का उद्देश्य काव्य सृजन ना होकर ईश्वर भक्ति था। भक्ति आंदोलन में सर्वाधिक योगदान रामानंद का था जिन्होंने भक्ति के द्वार निम्न वर्ग के लोगों के लिए भी खोल दिए। इनके 12 शिष्य निम्न जाति के ही थे जिनमें कबीर, पीपा, रैदास, मलूकदास आदि प्रमुख है।

भक्ति काल की साहित्यिक प्रवृत्तियां --  
  • भक्ति भावना की प्रधानता
  • गुरु का महत्व
  • अलौकिक साहित्य ( आध्यात्मिक रचनाएँ)
  • सगुण तथा निर्गुण ब्रह्म की उपासना
  • आडम्बर का विरोध
  • ब्रजभाषा एवं अवधी भाषा का प्रयोग
  • काव्य शैली (मुक्तक तथा प्रबंध)
संत साहित्य के प्रमुख दार्शनिक तत्व ----  
  1.  ब्रह्म  --- संत संप्रदाय का ब्रह्म निर्गुण निराकार एवं निर्विकार है। ब्रह्म  घट घट में निवास करता है। ब्रह्म की प्राप्ति गुरु ज्ञान द्वारा की जा सकती है।
  2.  जीव --  ब्रह्म और जीव का स्वरूप एक ही है, किंतु माया के कारण दोनों का अस्तित्व  अलग है। माया को ज्ञान द्वारा हटाया जा सकता है।
  3.  माया --  माया सत्य की विपरीत  भ्रम जाल फैलाने वाली है। सभी मुंह एवं आकर्षक वस्तुएं माया की प्रतीक है।
निर्गुण भक्ति साहित्य
संत काव्यधारा
सूफी काव्यधारा
  1. कबीर दास जी-- रामानंद की शिष्य परंपरा में आने वाले कबीर दास की हिंदी साहित्य के इतिहास में सबसे प्रखर महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित संत है। कबीर दास जी जुलाहा जाति से संबंधित है। कबीर ज्ञानाश्रई शाखा के प्रवर्तक कवि है। कबीर सबसे पहले समाज सुधारक है फिर संत और कवि। कबीर दास जी की वाणी का संकलन बीजक नामक ग्रंथ में किया गया है, जिसके तीन भाग हैं -  सबद, साखी एवं रमैनी।
  2.  गुरु नानक जी-- लाहोर में जन्मे गुरु नानक जी एक जब शाही परिवार से संबंधित  थे। उन्होंने पंजाब में कबीर जी की निर्गुण उपासना का प्रचार किया।  गुरु नानक जी सिख संप्रदाय के आदि गुरु है।
  3. दादू दयाल जी ---  अहमदाबाद में जन्मे धातु की जाति के विषय में विवाद है। जिन्होंने दादू पंथ की स्थापना की। इनकी पीठ राजस्थान के नारायणा में आज भी है।
  4.  सुंदर दास जी -- सुंदर दास जी दादू के शिष्य थे। इन की प्रसिद्ध रचना सुंदर विलास है।
  5.  मलूक दास जी-- मलूक दास जी ने आत्मज्ञान को ही मुक्ति का पर्याय बताया। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदू-मुसलमान दोनों को समान  भाव से उपदेश दिया।
 अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
 दास मलूका कह गए सबके दाता राम।।
मलिक मोहम्मद जायसी---   मोहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली के पास जायस नगर में हुआ। जायस नगर में जलने के कारण ही वे जायसी कहलाए। मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा विरचित पद्मावत काव्य समस्त सूखी प्रेम कार्यो में सर्वोत्तम है। मलिक मोहम्मद जायसी एक कान एक आंख से रहते थे। एक बार शेरशाह ने इनकी कुरूपता का उपहास उड़ाया तो इन्होंने शांत भाव से कहा कि-- मोहि क हससी , के कोहरहि? अर्थात तुम मुझ पर हंस रहे हो या उस निर्माता कुम्हार पर?  इस पर शेरशाह अत्यंत लज्जित हुए और उन्हें अपने राज्य में बड़े सम्मान से रखा।  मलिक मोहम्मद जायसी की प्रमुख कृतियां निम्न है -
आखिरी कलाम, अखरावट,  पद्मावत, बारहमासा। 





सगुण भक्ति काव्य
कृष्ण काव्य धारा
राम काव्य धारा 
कृष्ण भक्ति काव्य के विभिन्न संप्रदाय --
  1. वल्लभ संप्रदाय की स्थापना 16 वीं शताब्दी में आचार्य वल्लभ द्वारा की गई। पिंकी भक्ति का नाम पुष्टीमार्ग है। इनका मूल मंत्र है--- पोषणम् तदनुग्रहम्। इस संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत  शुद्धाद्वैत कहलाता है। इनके पुत्र का नाम विठ्लाचार्य था।वल्लभाचार्य के 4 शिष्यों तथा वित्तलाचार्य 4 शिष्यों को सम्मिलित कर अष्टछाप की स्थापना की गई।
  2.  निंबार्क संप्रदाय --  इस संप्रदाय के प्रवर्तक निंबार्क आचार्य। निंबार्क नाम के पीछे नीम के वृक्ष से इन आचार्य के द्वारा रात्रि को सूर्य के दर्शन करवाने संबंधी मनोरंजक किंबदंती प्रचलित है। इन्होंने श्री कृष्ण के कीर्तन को विशेष स्थान दिया है।
  3.  राधा वल्लभ संप्रदाय इस संप्रदाय की विशेषता यह है कि संप्रदाय में श्रीकृष्ण प्रमुख नहीं है,  अपितु राधा प्रमुख है।
  1. रामानंद --- इनका जन्म काशी में हुआ इनके बारे में कहा जाता है कि- “ भक्ति द्राविड़ी उपजी, लाये रामानंद ”। इनका प्रमुख पद्यांश है--
 आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
  1.  नरहरी दास जी --- बाबा नरहरिदास जी तुलसीदास जी के गुरु थे। इन्होंने पौरुषेय रामायण की रचना की।
  2. तुलसीदास जी--  गोस्वामी तुलसीदास जी  समस्त हिंदी काव्य के सर्वोच्च कवि एवं सर्वश्रेष्ठ संत है।तुलसीदास जी के समय समाज में विभिन्न विषमता व्याप्त थी।इनके पिता आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था।बताओ ना नंबर मैसेज करो इनकी 12 प्रमाणिक रचना मानी जाती है।
 रामचरितमानस इनकी जगत प्रसिद्ध रचना है। 
  1. सूरदास जी -  सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे। इनका जन्म दिल्ली के पास सीही नामक ग्राम में हुआ। इनकी उपलब्ध प्रामाणिक  रचनाएं है-  सूरसागर, सुर लहरी, सूर्य पच्चीसी, सूर रामायण, सूर साहित्य आदि। इनकी प्रसिद्धि का कारण इनकी कृति सूरसागर है। सूरसागर की कथा का प्रमुख आधार श्रीमद्भागवत पुराण है।
  2. नंद दास जी ---  अष्टछाप के कवियों में  नंददास  काव्य सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कभी है। यह विट्ठल दास के शिष्य थे एवं तुलसीदास जी के चचेरे भाई माने जाते हैं।इनकी  रचनाएं हैं -- रसमंजरी, रूपमंजरी  आदि।
  3.  मीराबाई --  इनका जन्म राजस्थान के गांव रत्न सिंह के घर में हुआ। उनका विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज के साथ 1516 ईसवी में हुआ। मीराबाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्ति थी। इनकी प्रमुख  रचनाएं मीरा पदावली, नरसी जी रो मायरो आदि है
           मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई।
           जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
  1.  रसखान-- राजस्थान मुस्लिम समुदाय के होते हुए भी श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी प्रसिद्ध कृति सुजान रसखान एवं प्रेम वाटिका है


रीतिकाल
हिंदी साहित्य के इतिहास में उत्तर मध्य काल को रीतिकाल के नाम से अभिहित किया जाता है| रीतिकाल का नाम विक्रम संवत1700 से 1900 तक माना जाता है।  रीतिकाल के नामकरण के विषय में विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने मत प्रस्तुत किए गए हैं -- 
अलंकृत काल
मित्र बंधु
काव्य में अलंकरण की  प्रधानता रही  
कलाकाल
डॉ रमाशंकर शुक्ल
कलात्मक काव्य की रचना पर जोर दिया गया
श्रृंगार काल
डॉ  विश्वनाथ प्रसाद
श्रृंगार परक रचनाओं की बाहुल्यता
रीतिकाल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
लक्ष्मण ग्रंथों की अधिकता &  रस अलंकार लाल का भी * मंगलाचरण आदि रीति का निर्वहन

 रीतिकालीन परिस्थितियां -- 
राजनीतिक परिस्थितियां-- समझ 17100 में भारत में शाहजहां का व्यक्ति था। शाह जहां एक और सक्षम शासक था तो वहीं दूसरी ओर उसने सांस्कृतिक और कालागत  उदारता भी थी। शाहजहां के बाद प्राधिकार हेतु उसके पुत्रों में युद्ध होने लगा है और औरंगजेब विजय हुआ। औरंगजेब ने साहित्य संगीत एवं कलाओं का विरोध किया। 
 सामाजिक परिस्थितियां  -- सामाजिक दृष्टि से रीतिकाल में अच्छी स्थिति नहीं थी। जन सामान्य अंधविश्वास  व्याप्त था। समाज में बाल विवाह है बहु विवाह है नारी शिक्षा आदि कुरीतियां व्याप्त थी। इस प्रकार रीतिकाल में सभ्यता व संस्कृति के साथ साथ उसी को महान आर्थिक संकट भी देखना पड़ा।
साहित्यिक परिस्थितियां --  रीतिकाल वस्तुतह समृद्धि एवं विलासिता का युग है। रीतिकालीन साहित्य स्वामिन: सुखाय था।इस साहित्य में श्रृंगार रस की प्रधानता थी।
 रीतिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियां --
  • लौकिक श्रृंगारिकता (कामुकता)
  • मुक्तक काव्य शैली
  • वीररस व श्रृंगार रस का प्रवाह
  • ब्रज भाषा
  • लक्षण ग्रंथों का निर्माण
  • नायिका भेद





रीतिकालीन साहित्य
रीतिबद्ध काव्य धारा
रीति सिद्ध काव्य धारा
रीतिमुक्त काव्यधारा
इस धारा के कवियों ने संस्कृत आचार्यों की लक्षण ग्रंथ परंपरा के आधार पर लक्षण ग्रंथों का अध्ययन किया।
धारा के कवियों ने मैं तो पूरी तरह लक्षण ग्रंथ की परंपरा का निर्वहन किया और ना ही उन से पूर्णतया मुक्त रहे।
किस काव्य धारा के कवियों ने लक्षण ग्रंथ परंपरा अनिर्बन नहीं किया। वे स्वतंत्र रहकर काव्य रचना करने में लिए थे। 
  1. कवि देव--देव  रीतिकाल के विद्यापति कवि है। इनका पूरा नाम देवदत्त था। इनके द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 72 मानी जाती है, जिनमें रसविलास, भाव विलास तथा देव शतक प्रसिद्ध ग्रंथ है।
  2.  केशवदास--रीतिबद्ध  कवि केशवदास को आलोचकों ने  कठिन काव्य का प्रेत और हृदय हीन कवि कहां है। क्योंकि उनकी रचनाओं मैं वक्रोक्ति तथा भाषागत पांडित्य प्रदर्शन देखने को मिलता है केशवदास की प्रसिद्ध रचनाएं रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, विज्ञान गीता आदि है।
  3.  पद्माकर -- पद्माकर का स्थान काव्य में रीतिबद्ध काव्य धारा के प्रमुख कवियों में परिगणित किया जाता है।उनके द्वारा अपने आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा में काव्य की रचना की गई ।उनकी प्रमुख रचनाएं जगत विनोद, गंगा लहरी, राम रसायन तथा पदमाभरण है। 
  4.  कवि भूषण --यह वीर रस के प्रमुख कवि है। इनके आश्रय दाता  वीर शिवाजी थे। कभी के द्वारा अपने आश्रय दाता की स्थिति में काव्य की रचनाएं की गई।  उनकी रचनाएं है-- शिवराज भूषण शिवा बावनी छत्रसाल दशक।
कवि बिहारी --  कवि बिहारी को गागर में सागर भरने वाला कभी भी कहा गया है। विजयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। नितेश साहित्य में सामासिक पदों की  अधिकता होती थी। इनकी प्रमुख रचना बिहारी सब सही है।
 सतसैया के दोहरे जो नाविक के तीर।
 देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर।।
  1. आलम -- आलम श्रृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे गुरुग्राम तुम्हें शेख नामक रंगरेजिन से विशेष प्रेम था। जब एक बार आलम की लिखी हुई एक पंक्ति “कनक छरी सो कामिनी काहे को कटी छीन”भूल से रंगाई करने के लिए उनकी पगड़ी की गांठ में बंधी चली गई तो शेख ने उसकी दूसरी पंक्ति लिखकर आलम के पास भेज दी। आलम की प्रसिद्ध रचना आलम केली है। 
  2.  घनानंद -- घनानंद वियोग श्रृंगार के प्रमुख कवि हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को 'साक्षात रसमूर्ति' कहा गया है। घनानंद की प्रमुख रचनाएं सुजान सागर ,इश्कलता, रसकेलि वल्ली आदि है ।



आधुनिक काल
आधुनिक हिंदी साहित्य का आरंभ 19वीं शताब्दी के आरंभ से माना जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल के बाद चतुर्थ काल आधुनिक काल का आता है। इसका आरंभ 1850 के आसपास से माना जाता है।यह सन भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म काल है। उस दौरान विभिन्न आंदोलन, संघर्ष और 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ।भारतीय और यूरोपीय संस्कृति और आदर्शों के संघर्षों से भारतीय जीवन में नवजागरण का स्पंदन प्रारंभ हुआ था। इस कारण  भारतेंदु युग को पुनर्जागरण काल भी करते हैं। आधुनिक हिंदी साहित्य का आरंभ भारतेंदु युग से माना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के युग प्रवर्तक एवं मील के पत्थर कहे जाते हैं। आधुनिक  हिंदी साहित्य के प्रवर्तन में भारतेंदु जी की भूमिका अग्रणी है। भारतेंदु एवं उनके मंडल ने साहित्य को रीति प्रवृत्तियों के घेरे से बाहर निकाल कर जनता से  जोड़ा।आधुनिक काल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने गद्य काल के नाम से अभिहित किया है।शुक्ला जी के अनुसार आधुनिक काल निम्न युगों में विभक्त है -- 
भारतेंदु युग
1850 से 1900 
इस युग में गद्य  का विविध रूपों में  विकास हुआ
द्विवेदी युग /  सुधारवादी युग
1900 से 1918
साहित्य में राष्ट्रीय भावना की प्रधानता
छायावादी युग
1918 से  1935
प्रकृति चित्रण की प्रधानता
प्रगतिवादी युग
1935 से  1942
मार्क्सवाद का प्रभाव 
प्रयोगवादी युग
1942 से 1954
तार सप्तक का प्रकाशन
नई कविता 
1954 से 1960

साठोत्तरी कविता / समकालीन कविता /  कविता 
1960 से अब तक

    


आधुनिक युग के दौरान सांस्कृतिक पुनर्जागरण में विभिन्न संस्थाओं का योगदान--
  1. ब्रह्म समाज --  राजा राममोहन राय ने सन 1829 ईस्वी में राष्ट्रीय जागरण एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की । उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए लोगों को बताया कि भारतीय परंपरा का विशुद्ध रूप ब्रह्म उपासना है। अतः राजा राममोहन राय ने कर्मकांड, अंधविश्वास, मूर्ति पूजा, बाह्य आडंबर, जाति प्रथा, सती प्रथा आदि बुराइयों का प्रबल विरोध किया। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दिया।राजाराम मोहन राय ने संवाद कौमुदी की रचना की| 
  2.  आर्य समाज---आर्य समाज की स्थापना सन 1867 में  दयानंद सरस्वती द्वारा की गई । स्वामी जी ने कच्चे कार्य के लिए आर्य भाषा पढ़ना आवश्यक ठहराया । आर्य समाज ने हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया वह सदैव स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा दयानंद सरस्वती जी ने अपनी प्रसिद्ध रचना सत्यार्थ प्रकाश  मैं  ईसाई  एवं मुस्लिम  धर्मों की आलोचना की है ।  
  3.  रामकृष्ण मिशन--  रामकृष्ण मिशन की स्थापना रामकृष्ण परमहंस के स्वर्ग गमन के बाद उनके शिष्य  विवेकानंद ने की थी ।  सन 18 सो 93 विवेकानंद सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए शिकागो गए ।  उन्होंने विश्व के समक्ष भारतीय संस्कृति, दर्शन  एवं धर्म की महत्ता को  प्रस्तुत किया ।
  4.  थियोसोफिकल सोसायटी--इस संस्था की स्थापना सन 18 सो 75 ईस्वी में मैडम ब्लावस्तु और ओनकार्ट द्वारा न्यूयॉर्क में हुई थी | श्रीमती एनी बेसेंट 1888 में संस्था से जुड़ी | बनारस का सेंट्रल हिंदू कॉलेज की सोसाइटी द्वारा स्थापित किया गया । 
आधुनिक युग की प्रमुख प्रवृत्तियां -- 
  • खड़ीबोली हिंदी की प्रधानता
  • राष्ट्रीयता की भावना
  • प्रकृति-सौंदर्य
  • नारी के प्रति नवीन दृष्टिकोण


आधुनिक काल
भारतेंदु युग
द्विवेदी युग
छायावादी युग
प्रगतिवादी युग
भारतेंदु युग में गद्य का विविध रूपों में विकास हुआ। अतः इसे गद्य काल भी कहा जाता है।भारतीय हिंदू हरिश्चंद्र किस युग के  प्रमुख साहित्यकार है, उन्हीं के नाम पर इस युग का नामकरण हुआ। भारतेंदु युगीन साहित्य की प्रमुख भाषा ब्रज भाषा थी। तत्कालीन साहित्य में मुक्तक काव्य शैली प्रयुक्त की जाती थी। इस युग में देश प्रेम की व्यंजना करने वाली कृतियों की रचना हुई।
द्विवेदी युग में राष्ट्रीय भावना प्रधान साहित्य की रचना की जाने लगी थी। इस युग के प्रमुख साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी थे उन्हीं के नाम पर इस काल का नामकरण किया गया है। द्विवेदी युगीन काव्य में खड़ी बोली हिंदी प्रधानता देखने को मिलती है।
छायावाद हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान कि वह काव्यधारा है, जो लगभग 1918 से 1936 तक की प्रमुख युगवाणी रही। जयशंकर प्रसाद सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पंत जी आदि इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। द्विवेदी युग की कविता नीरस, उपदेशात्मक और इतिवृत्तात्मक थी, जबकि छायावाद में कल्पना प्रधान व भावोन्मेष युक्त कविताएं रची गई।छायावाद को खड़ी बोली काव्य का स्वर्ण काल कहा जाता है।इस युग के साहित्य में रहस्यवाद एवं लाक्षणिक ता के दर्शन होते हैं। इस समय की काव्य में प्रकृति चित्रण वह प्रेम की व्यंजना की प्रधानता देखने को मिलती है।आचार्य शुक्ल जी ने श्रीधर पाठक को छायावादी काव्यधारा का प्रवर्तक माना है 
इस युग कों छायावादोत्तर काल भी कहा जाता है।  किसी योग्य साहित्य में क्रांति के स्वर की प्रधानता है । प्रगतिवादी साहित्य में मार्क्सवादी विचारधारा के दर्शन होते हैं। छायावादी  साहित्य कल्पना प्रधानत था, जबकि प्रगतिवाद की कविताओं ने जीवन को यथार्थ से जोड़ा।
भारतेंदु हरिश्चंद्र == प्रेम सागर, प्रेम माधुरी, प्रेम फुलवारी, अंधेर नगरी चौपट राजा, सत्य हरिश्चंद्र
 बालकृष्ण भट्ट(शिव शंभू के चिट्ठे) --   हिंदी प्रदीप ,  चंद्रसेन ,नूतन ब्रह्मचारी
 प्रताप नारायण मिश्र --  पंच परमेश्वर 
महावीर प्रसाद द्विवेदी --सरस्वती पत्रिका का संपादन,  हिंदी भाषा की उत्पत्ति
 मैथिलीशरण गुप्त== साकेत, पंचवटी, यशोधरा, भारत भारती
 अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध== प्रियप्रवास, पारिजात, वैदेही वनवास
 माखनलाल चतुर्वेदी== हिम तरंगिणी, हिम्मत किरीटिनी
कवि--
जयशंकर प्रसाद(विरह रस) --कामायनी, आंसू ,  झरना, लहर
 महादेवी वर्मा(आधुनिक मीरा){हिंदी का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार सन 1982 में यामा हेतु}[पद्मविभूषण पुरस्कार सन 1988 में मरणोपरांत]--यामा,  दीपशिखा, अतीत के चलचित्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला{क्रांतिकारी कवि}-- आनंदमठ का हिंदी अनुवाद, कुकुरमुत्ता, अनामिका
 सुमित्रानंदन पंत [प्रकृति के सुकुमार कवि]( ज्ञानपीठ पुरस्कार सन 1968 में चिदंबरा के लिए){साहित्य अकादमी पुरस्कार सन 1960 में कला और बूढ़ा चांद हेतु}-- चिदंबरा, पल्लव, युगवाणी, वीणा
लेखक--
आचार्य रामचंद्र शुक्ल-- 
निबंध- चिंतामणि, रस मीमांसा
 इतिहास- हिंदी साहित्य का इतिहास
 मुंशी प्रेमचंद ==
उपन्यास-- सेवा सदन, प्रेम आश्रम, गबन, गोदान, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, मंगलसूत्र( अधूरा) 
कहानी-- ईदगाह, पूस की रात, बड़े घर की बेटी,  मानसरोवर
 इनकी जीवनी कलम का सिपाही के लेखक अमृतराय हैं। इन पर ₹30 का टिकट जारी किया गया। 
हजारी प्रसाद द्विवेदी== अशोक के फूल, कुटज
 रांगेय राघव== पांचाली, राह के गीत
 रामधारी सिंह दिनकर== उर्वशी, कुरुक्षेत्र, अर्धनारीश्वर
साहित्यिक प्रवृतियां--
देशप्रेम की व्यंजना
शृंगार, वीर और करुण रस
ब्रजभाषा
मुक्तक काव्य शैली   जन-काव्य
साहित्यिक प्रवृतियां--
राष्ट्रीय-भावना
खड़ीबोली हिंदी की प्रधानता
काव्य शैली – (मुक्तक तथा प्रबंध
साहित्यिक प्रवृतियां--
वैयक्तिकता की प्रधानता
प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना
रहस्यवाद
लाक्षणिकता
साहित्यिक प्रवृतियां--
क्रांति का स्वर
सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण
राष्ट्रीयता

  प्रयोगवादी युग 
नई कविता / नवलेखन काल 
प्रयोगवादी युगीन साहित्य का आरंभ बंगाली से प्रकाशित तार सप्तक नामक संग्रह से माना जाता है इसके संपादक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय थे। इसमें सात कवियों की  रचनाओं का संकलन किया गया है।
नई कविता प्रयोगवादी काव्यधारा का ही विकसित रूप है। ऐतिहासिक दृष्टि से नयी कविता ’दूसरा सप्तक’ (1951) के बाद की कविता को कहा जाता है।इसका भी युग का नामकरण हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा नई कविता किया गया। लक्ष्मीकांत वर्मा के अनुसार नयी कविता(nayi kavita) मूलतः 1953 ई. में ’नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई। नई कविता वस्तुतः प्रयोगवाद का ही परिष्कृत रूप है।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय-- तार सप्तक,  कितनी नावों में कितनी बार,  शेखर एक जीवनी,  नदी के द्वीप
 धर्मवीर भारती==  गुनाहों का देवता, अंधा युग
 हरिवंश राय बच्चन== मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, क्या भूलूं क्या याद करूं
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय-- तार सप्तक,  कितनी नावों में कितनी बार,  शेखर एक जीवनी,  नदी के द्वीप
दुष्यंत कुमार-- एक कंठ विषपायी, साये में धूप, सूर्य का स्वागत
गजानन माधव मुक्तिबोध-- चांद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल
 धूमिल-- संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे 
 केदारनाथ सिंह-- अकाल में सारस, बाघ
खड़ीबोली हिंदी की प्रधानता
मुक्तक काव्य शैली
निराशावाद
यथार्थ का चित्रण
अभिव्यक्ति की स्वछंद प्रवृत्ति
वैयक्तिकता की प्रधानता












कवि /  लेखक
जन्म
स्थान 
रचनाएं
विशेष विवरण
कबीर दास जी
14 वी- 15 वी शताब्दी
काशी
बीजक, साथी, सबद , रमैनी
नीमा एवं नीरू को कबीर जी काशी के लहरतारा तालाब के पास मिले। उन्होंने उनका पालन पोषण किया। कबीर जाति से जुलाहा थे । कबीर जी पंचगंगा घाट पर सीढ़ियों से गिर पड़े और रामानंद के चरणों में आ पड़े तो रामानंद के मुंह से राम राम शब्द निकले। इन्हीं राम को कबीर ने अपना दीक्षा मंत्र बना दिया। कबीर के कमल एवं कमाली दो संताने थी। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। कबीर जी की वाणी का संग्रह डीजे के नाम से प्रसिद्ध है। 119 वर्ष की अवस्था में मृत्यु हुई।
मलिक मोहम्मद जायसी
1467
जायस नगर उत्तर प्रदेश
पद्मावत, अखरोट, आखिरी कलाम
सूफी काव्य धारा के कवि थे।पिता मलिक राजे थे। जायसी कुरूप एवं काने थे। शेरशाह ने उनकी बेज्जती की थी।  पद्मावत में हीरामन तोता पद्मिनी   सौंदर्य की प्रशंसा करता है।
सूरदास जी
1540सूरदास जी का जन्म कब हुआ 
सीजी नामक गांव में
सूरसागर, सुर लहरी, भ्रमरगीत, साहित्य लहरी, सूरपच्चीसी, नल दमयंती
सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य थे। सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट थे।  जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। विद्वानों का मानना है कि सूरदास जन्मांध नहीं थे।
मीराबाई जी
1560
कुर्की गांव में 
गीत गोविंद पर टीका, नरसी जी रो मायरो, राधे गोविंद
इनका विवाह उदयपुर के महाराणा भोजराज के साथ हुआ था। राणा सांगा उनके ससुर थे ।
तुलसीदास जी
1554
राजापुर गांव में
रामचरितमानस, विनय पत्रिका, गीतावली, कवितावली, जानकी मंगल
इनके गुरु नरहरी दास जी  थे। इनके पिता आत्माराम दुबे थे। उनकी पत्नी  रत्नावली एवं उनकी माता हुलसी थी ।
पद्माकर
1753
बांदा नामक स्थान 
पदमा भरण, जगत विनोद, गंगा लहरी
यह तेलंग ब्राह्मण थे। उनके पिता मोहनलाल पुत्र थे। जयपुर नरेश सवाई प्रताप सिंह ने कवि शिरोमणि की उपाधि दी। 
कवि बिहारी
1603
ग्वालियर में
बिहारी सतसई 
इनके पिता केशवराय थे। यह जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी  थे। इन्होंने राजा को रानी के प्रेम पाश से मुक्त करवाया।
घनानंद
1746
दिल्ली में
सुजान सागर
यह मोहम्मद शाह रंगीली के दरबारी थे। वहां सुजान नामक नृत्य की पर आ सकती थी। वृंदावन जाकर वैराग्य धारण किया और वियोग रस की कविताएं लिखी 
कवि भूषण
1613
कानपुर में 
शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक 
इनकी भाभी ने ताना दिया नमक कमा कर लाए हो? उन्होंने तब घर छोड़ दिया। वीर शिवाजी के लिए दरबारी थे। चित्रकूट नरेश रुद्र सोलंकी ने इन्हें भूषण की उपाधि दी। रीतिकाल के एकमात्र कवि है जिन्होंने वीर रस  मैं कविता लिखें।
भारतेंदु हरिश्चंद्र 
1850
काशी में 
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति अंधेर नगरी ,मुद्राराक्षस ,फूलों का गुच्छा 
पिताजी गोपाल चंद भी एक कवि थे। काशी के विद्वानों ने उन्हें  भारतेंदु( भारत का चंद्रमा)  उपाधि दी । 18 वर्ष की आयु में उन्होंने कवि वचन सुधा नामक पत्रिका निकाली। 
महावीर प्रसाद द्विवेदी 
1864
रायबरेली उत्तर प्रदेश 
सरस्वती पत्रिका का संपादन, हिंदी भाषा की उत्पत्ति 
उनके पिता का नाम राम सहाय था।  इन्होंने रेल विभाग में नौकरी की 
मैथिलीशरण गुप्त
1886
झांसी उत्तर प्रदेश 
साकेत, भारत भारती, पंचवटी 
यह दद्दा नाम से प्रसिद्ध थे
जयशंकर प्रसाद
1889
काशी में
कामायनी,   आंसू , झरना, लहर
प्रसाद जी वीर रस के प्रख्यात कवि के कामायनी इसका उदाहरण है। 
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
1896
बंगाल में
कुकुरमुत्ता अनामिका आनंदमठ का हिंदी अनुवाद,नई पत्ते 
क्रांतिकारी कवि थे।
महादेवी वर्मा
1907
उत्तर प्रदेश में 
यामा दीपशिखा अतीत के चलचित्र
महादेवी वर्मा जी महात्मा गांधी जी के संपर्क में आने के बाद समाजसेवी बनी। इन्होंने नारी शिक्षा के प्रसार हेतु प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की एवं प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। हिंदी का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार 1982 में जामा हेतु। पद्म विभूषण पुरस्कार 1988 में।
सुमित्रानंदन पंत
1900
अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश 
वीणा, वाणी, युगपथ, चिदंबरा
पंत जी प्रकृति के सुकुमार कवि कह जाते हैं। पंत जी ने महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर अपने पढ़ाई को बीच में छोड़ा। सन 1968 में चिदंबरा हेतु ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। साहित्य अकादमी पुरस्कार 1960 में कला और बूढ़ा चांद हेतु मिला।
  रामधारी सिंह दिनकर
1908
बिहार में 
उर्वशी कुरुक्षेत्र अर्धनारीश्वर
राष्ट्र भक्त कवि थे। इनके पिता साधारण किसान थे।
हरिवंश राय बच्चन
1907
इलाहाबाद के प्रतापगढ़ जिले में 
मधुबाला मधुशाला मधु कलश, क्या भूलूं क्या याद करूं
पत्नी का नाम श्यामा था। आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी थे। दो चट्टानें रचना हेतु साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला। अमिताभ बच्चन के पिता जी  थे। हालावाद के प्रवर्तक थे।
नरेंद्र शर्मा 
1913
बुलंदशहर उत्तर प्रदेश में 
मिट्टी और फूल, प्रवासी के गीत
बी आर चोपड़ा महाभारत बना रहे थे, तो नरेंद्र शर्मा उनके सलाहकार की भूमिका निभा रहे थे। 
नागार्जुन
1911
बिहार में
सतरंगी पंखों वाली, वरुण के बेटे,  तालाब की मछलियां, युग धारा
नागार्जुन मैथिली भाषा में यात्री नाम से लेखन करते थे। 
हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय 
1911
उत्तर प्रदेशमें 
शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, कितनी नावों में कितनी बार बार
इन के बचपन का नाम क्या था | कितनी नावों में कितनी बार रचना हेतु में नहीं है भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।इन्होंने प्रथम द्वितीय एवं तृतीय तार सप्तक का संपादन किया। आंगन के पार द्वार रचना हेतु उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला।
दुष्यंत कुमार
1933
बिजनौर, उत्तर प्रदेश
साए में धूप गजल संग्रह, एक कंठ विषपाई नाटिका
इनके पिता भगवत सहाय तथा माता राम किशोरी देवी थी। इन्होंने दसवीं कक्षा से ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। सन 1975 में उनका प्रकाशित हुआ।
रघुवीर सहाय
1929
लखनऊ में
दिल्ली मेरा प्रदेश, रास्ता इधर से है लोग भूल गए हैं
कविता संग्रह लोग भूल गए हैं के लिए 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं। दूसरे सप्तक में अपनी रचनाएं  लिखी। 

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Hey there! myself Rahul Kumawat . I post articles about psychology, Sanskrit, Hindi literature, grammar and Rajasthan GK ..

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