रीतिकाल
हिंदी साहित्य के इतिहास में उत्तर मध्य काल को रीतिकाल के नाम से अभिहित किया जाता है| रीतिकाल का नाम विक्रम संवत1700 से 1900 तक माना जाता है। रीतिकाल के नामकरण के विषय में विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने मत प्रस्तुत किए गए हैं --
अलंकृत काल
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मित्र बंधु
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काव्य में अलंकरण की प्रधानता रही
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कलाकाल
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डॉ रमाशंकर शुक्ल
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कलात्मक काव्य की रचना पर जोर दिया गया
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श्रृंगार काल
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डॉ विश्वनाथ प्रसाद
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श्रृंगार परक रचनाओं की बाहुल्यता
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रीतिकाल
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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लक्ष्मण ग्रंथों की अधिकता & रस अलंकार लाल का भी * मंगलाचरण आदि रीति का निर्वहन
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रीतिकालीन परिस्थितियां --
राजनीतिक परिस्थितियां-- समझ 17100 में भारत में शाहजहां का व्यक्ति था। शाह जहां एक और सक्षम शासक था तो वहीं दूसरी ओर उसने सांस्कृतिक और कालागत उदारता भी थी। शाहजहां के बाद प्राधिकार हेतु उसके पुत्रों में युद्ध होने लगा है और औरंगजेब विजय हुआ। औरंगजेब ने साहित्य संगीत एवं कलाओं का विरोध किया।
सामाजिक परिस्थितियां -- सामाजिक दृष्टि से रीतिकाल में अच्छी स्थिति नहीं थी। जन सामान्य अंधविश्वास व्याप्त था। समाज में बाल विवाह है बहु विवाह है नारी शिक्षा आदि कुरीतियां व्याप्त थी। इस प्रकार रीतिकाल में सभ्यता व संस्कृति के साथ साथ उसी को महान आर्थिक संकट भी देखना पड़ा।
साहित्यिक परिस्थितियां -- रीतिकाल वस्तुतह समृद्धि एवं विलासिता का युग है। रीतिकालीन साहित्य स्वामिन: सुखाय था।इस साहित्य में श्रृंगार रस की प्रधानता थी।
रीतिकालीन साहित्य की प्रवृत्तियां --

रीतिकालीन साहित्य
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रीतिबद्ध काव्य धारा
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रीति सिद्ध काव्य धारा
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रीतिमुक्त काव्यधारा
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इस धारा के कवियों ने संस्कृत आचार्यों की लक्षण ग्रंथ परंपरा के आधार पर लक्षण ग्रंथों का अध्ययन किया।
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धारा के कवियों ने मैं तो पूरी तरह लक्षण ग्रंथ की परंपरा का निर्वहन किया और ना ही उन से पूर्णतया मुक्त रहे।
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किस काव्य धारा के कवियों ने लक्षण ग्रंथ परंपरा अनिर्बन नहीं किया। वे स्वतंत्र रहकर काव्य रचना करने में लिए थे।
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कवि देव--देव रीतिकाल के विद्यापति कवि है। इनका पूरा नाम देवदत्त था। इनके द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 72 मानी जाती है, जिनमें रसविलास, भाव विलास तथा देव शतक प्रसिद्ध ग्रंथ है।
केशवदास--रीतिबद्ध कवि केशवदास को आलोचकों ने कठिन काव्य का प्रेत और हृदय हीन कवि कहां है। क्योंकि उनकी रचनाओं मैं वक्रोक्ति तथा भाषागत पांडित्य प्रदर्शन देखने को मिलता है केशवदास की प्रसिद्ध रचनाएं रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, विज्ञान गीता आदि है।
पद्माकर -- पद्माकर का स्थान काव्य में रीतिबद्ध काव्य धारा के प्रमुख कवियों में परिगणित किया जाता है।उनके द्वारा अपने आश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा में काव्य की रचना की गई ।उनकी प्रमुख रचनाएं जगत विनोद, गंगा लहरी, राम रसायन तथा पदमाभरण है।
कवि भूषण --यह वीर रस के प्रमुख कवि है। इनके आश्रय दाता वीर शिवाजी थे। कभी के द्वारा अपने आश्रय दाता की स्थिति में काव्य की रचनाएं की गई। उनकी रचनाएं है-- शिवराज भूषण शिवा बावनी छत्रसाल दशक।
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कवि बिहारी -- कवि बिहारी को गागर में सागर भरने वाला कभी भी कहा गया है। विजयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। नितेश साहित्य में सामासिक पदों की अधिकता होती थी। इनकी प्रमुख रचना बिहारी सब सही है।
सतसैया के दोहरे जो नाविक के तीर।
देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर।।
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आलम -- आलम श्रृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे गुरुग्राम तुम्हें शेख नामक रंगरेजिन से विशेष प्रेम था। जब एक बार आलम की लिखी हुई एक पंक्ति “कनक छरी सो कामिनी काहे को कटी छीन”भूल से रंगाई करने के लिए उनकी पगड़ी की गांठ में बंधी चली गई तो शेख ने उसकी दूसरी पंक्ति लिखकर आलम के पास भेज दी। आलम की प्रसिद्ध रचना आलम केली है।
घनानंद -- घनानंद वियोग श्रृंगार के प्रमुख कवि हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को 'साक्षात रसमूर्ति' कहा गया है। घनानंद की प्रमुख रचनाएं सुजान सागर ,इश्कलता, रसकेलि वल्ली आदि है ।
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