भक्ति काल
हिंदी साहित्य के इतिहास में आदिकाल के पश्चात भक्ति काल आता है। साहित्य दृष्टि से भक्ति काल का समय 3075 विक्रम संवत से लेकर 1700 विक्रम संवत के मध्य तक माना जाता है।भक्ति आंदोलन हिंदी साहित्य ही नहीं अपितु भारतीय साहित्य एवं भारतीय जनमानस का एक महत्वपूर्ण आंदोलन है। भक्ति काल को दो शाखाओं में विभक्त किया गया है- निर्गुण भक्ति काव्य तथा सगुण भक्ति काव्य। निर्गुण भक्ति काव्य को पुनः संत काव्य धारा एवं सूफी काव्य धारा में विभक्त किया गया है, इसी प्रकार सगुण भक्ति काव्य को भी कृष्ण काव्य धारा एवं राम काव्य धारा में विभाजित किया गया है।
भक्ति काल की परिस्थितियां ----
राजनीतिक परिस्थितियां -- तेरहवीं शताब्दी मैं भारत पर मोहम्मद तुगलक का शासन था। मोहम्मद तुगलक बहुमुखी प्रतिभाशाली था। वह धर्म क्षेत्र में उधार तथा कला को प्रश्रय प्रदान करने वाला शासक था।फिल्म सन 1526 में पानीपत के युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की। भारत में मुगलों का शासन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूं तथा उसके बाद बहु प्रतिभाशाली अकबर ने भारत पर शासन किया। अकबर ने हिंदुओं के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए। हिंदुओं पर सेजरिया कर हटाया। अकबर एक उदार एवं जन हितेषी राजा था। किंतु बाद में औरंगजेब आदि कट्टरवादी एवं निष्क्रिय शासकों के कारण मुगल वंश का नाश हुआ। देश में मुस्लिमों शासको के द्वारा हिंदू मंदिरों का विध्वंस किया जाता था, देव मूर्तियां तोड़ी जाती थी । इस कारण जनता का रुख भक्ति की ओर मुड़ा तथा भक्ति प्रधान साहित्य का सृजन हुआ।
सामाजिक परिस्थितियां -- भक्ति आंदोलन ने अपने आरंभिक दौर में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द पर बल दिया। इसमें वर्ण व्यवस्था में जाति प्रथा का विरोध किया गया। इस काल में पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुरीतियों का बोलबाला था। राजपूतों में कन्या शिशु के जन्म से ही उसे मार दिया जाता था।
साहित्यिक-सांस्कृतिक परिस्थितियां ---- इस काल में भक्ति भावना के प्रचारार्थ साहित्य की रचना की गई। भक्ति काव्य जहां धर्म की व्याख्या करता है, वही उसने उच्च कोटि के काव्य के दर्शन होते हैं। इस काल का साहित्य स्वान्तः सुखाय है। किस काल के कवियों का उद्देश्य काव्य सृजन ना होकर ईश्वर भक्ति था। भक्ति आंदोलन में सर्वाधिक योगदान रामानंद का था जिन्होंने भक्ति के द्वार निम्न वर्ग के लोगों के लिए भी खोल दिए। इनके 12 शिष्य निम्न जाति के ही थे जिनमें कबीर, पीपा, रैदास, मलूकदास आदि प्रमुख है।
भक्ति काल की साहित्यिक प्रवृत्तियां --
संत साहित्य के प्रमुख दार्शनिक तत्व ----
ब्रह्म --- संत संप्रदाय का ब्रह्म निर्गुण निराकार एवं निर्विकार है। ब्रह्म घट घट में निवास करता है। ब्रह्म की प्राप्ति गुरु ज्ञान द्वारा की जा सकती है।
जीव -- ब्रह्म और जीव का स्वरूप एक ही है, किंतु माया के कारण दोनों का अस्तित्व अलग है। माया को ज्ञान द्वारा हटाया जा सकता है।
माया -- माया सत्य की विपरीत भ्रम जाल फैलाने वाली है। सभी मुंह एवं आकर्षक वस्तुएं माया की प्रतीक है।
निर्गुण भक्ति साहित्य
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संत काव्यधारा
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सूफी काव्यधारा
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कबीर दास जी-- रामानंद की शिष्य परंपरा में आने वाले कबीर दास की हिंदी साहित्य के इतिहास में सबसे प्रखर महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित संत है। कबीर दास जी जुलाहा जाति से संबंधित है। कबीर ज्ञानाश्रई शाखा के प्रवर्तक कवि है। कबीर सबसे पहले समाज सुधारक है फिर संत और कवि। कबीर दास जी की वाणी का संकलन बीजक नामक ग्रंथ में किया गया है, जिसके तीन भाग हैं - सबद, साखी एवं रमैनी।
गुरु नानक जी-- लाहोर में जन्मे गुरु नानक जी एक जब शाही परिवार से संबंधित थे। उन्होंने पंजाब में कबीर जी की निर्गुण उपासना का प्रचार किया। गुरु नानक जी सिख संप्रदाय के आदि गुरु है।
दादू दयाल जी --- अहमदाबाद में जन्मे धातु की जाति के विषय में विवाद है। जिन्होंने दादू पंथ की स्थापना की। इनकी पीठ राजस्थान के नारायणा में आज भी है।
सुंदर दास जी -- सुंदर दास जी दादू के शिष्य थे। इन की प्रसिद्ध रचना सुंदर विलास है।
मलूक दास जी-- मलूक दास जी ने आत्मज्ञान को ही मुक्ति का पर्याय बताया। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदू-मुसलमान दोनों को समान भाव से उपदेश दिया।
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।।
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मलिक मोहम्मद जायसी--- मोहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली के पास जायस नगर में हुआ। जायस नगर में जलने के कारण ही वे जायसी कहलाए। मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा विरचित पद्मावत काव्य समस्त सूखी प्रेम कार्यो में सर्वोत्तम है। मलिक मोहम्मद जायसी एक कान एक आंख से रहते थे। एक बार शेरशाह ने इनकी कुरूपता का उपहास उड़ाया तो इन्होंने शांत भाव से कहा कि-- मोहि क हससी , के कोहरहि? अर्थात तुम मुझ पर हंस रहे हो या उस निर्माता कुम्हार पर? इस पर शेरशाह अत्यंत लज्जित हुए और उन्हें अपने राज्य में बड़े सम्मान से रखा। मलिक मोहम्मद जायसी की प्रमुख कृतियां निम्न है -
आखिरी कलाम, अखरावट, पद्मावत, बारहमासा।
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सगुण भक्ति काव्य
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कृष्ण काव्य धारा
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राम काव्य धारा
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कृष्ण भक्ति काव्य के विभिन्न संप्रदाय --
वल्लभ संप्रदाय की स्थापना 16 वीं शताब्दी में आचार्य वल्लभ द्वारा की गई। पिंकी भक्ति का नाम पुष्टीमार्ग है। इनका मूल मंत्र है--- पोषणम् तदनुग्रहम्। इस संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत शुद्धाद्वैत कहलाता है। इनके पुत्र का नाम विठ्लाचार्य था।वल्लभाचार्य के 4 शिष्यों तथा वित्तलाचार्य 4 शिष्यों को सम्मिलित कर अष्टछाप की स्थापना की गई।
निंबार्क संप्रदाय -- इस संप्रदाय के प्रवर्तक निंबार्क आचार्य। निंबार्क नाम के पीछे नीम के वृक्ष से इन आचार्य के द्वारा रात्रि को सूर्य के दर्शन करवाने संबंधी मनोरंजक किंबदंती प्रचलित है। इन्होंने श्री कृष्ण के कीर्तन को विशेष स्थान दिया है।
राधा वल्लभ संप्रदाय इस संप्रदाय की विशेषता यह है कि संप्रदाय में श्रीकृष्ण प्रमुख नहीं है, अपितु राधा प्रमुख है।
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रामानंद --- इनका जन्म काशी में हुआ इनके बारे में कहा जाता है कि- “ भक्ति द्राविड़ी उपजी, लाये रामानंद ”। इनका प्रमुख पद्यांश है--
आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
नरहरी दास जी --- बाबा नरहरिदास जी तुलसीदास जी के गुरु थे। इन्होंने पौरुषेय रामायण की रचना की।
तुलसीदास जी-- गोस्वामी तुलसीदास जी समस्त हिंदी काव्य के सर्वोच्च कवि एवं सर्वश्रेष्ठ संत है।तुलसीदास जी के समय समाज में विभिन्न विषमता व्याप्त थी।इनके पिता आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था।बताओ ना नंबर मैसेज करो इनकी 12 प्रमाणिक रचना मानी जाती है।
रामचरितमानस इनकी जगत प्रसिद्ध रचना है।
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सूरदास जी - सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे। इनका जन्म दिल्ली के पास सीही नामक ग्राम में हुआ। इनकी उपलब्ध प्रामाणिक रचनाएं है- सूरसागर, सुर लहरी, सूर्य पच्चीसी, सूर रामायण, सूर साहित्य आदि। इनकी प्रसिद्धि का कारण इनकी कृति सूरसागर है। सूरसागर की कथा का प्रमुख आधार श्रीमद्भागवत पुराण है।
नंद दास जी --- अष्टछाप के कवियों में नंददास काव्य सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कभी है। यह विट्ठल दास के शिष्य थे एवं तुलसीदास जी के चचेरे भाई माने जाते हैं।इनकी रचनाएं हैं -- रसमंजरी, रूपमंजरी आदि।
मीराबाई -- इनका जन्म राजस्थान के गांव रत्न सिंह के घर में हुआ। उनका विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज के साथ 1516 ईसवी में हुआ। मीराबाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्ति थी। इनकी प्रमुख रचनाएं मीरा पदावली, नरसी जी रो मायरो आदि है
मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
रसखान-- राजस्थान मुस्लिम समुदाय के होते हुए भी श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी प्रसिद्ध कृति सुजान रसखान एवं प्रेम वाटिका है
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